देव भूमि उत्तराखण्ड
प्रकृति ने उत्तराखण्ड को दिल खोल कर अपनी सौगातों से भर दिया है। ब्रह्माण्ड का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जो यहाँ आ करके यहाँ के प्रकृति पर मोहित न हो जाये। ध्यान दीजियेगा मैं कहीं से आने वाले की बात कर रहा हूँ। यहाँ का निवासी शायद मेरी बातों से सहमत न हो क्योंकि प्रकृति के इस रसीले वातावर्ण में कठिनाइयाँ भी कम नहीं हैं। श्रीरामचरितमनसजीमें लिखा है,
जो अति आतप ब्याकुल होई। तरु छाया सुख जानइ सोई॥
प्रसंग में गरुणजी काकभुशुंडि जी से कह रहे हैं कि यदि मुझे मोह ने न घेरा होता तो मैं यह सत्संग लाभ कैसे पाता? जब तक धूप कि व्याकुलता न हो तब तक पेड़ कि छाया का सुख नहीं मिलता है।
उत्तराखंड के बाहरके लोग तो धूप से जले के समान हैं जिनको वहाँ जा कर सुख ही सुख मिलता है परंतु वहाँ के वासी को शायद वह सुख प्रतीत नहीं होता होगा।
उत्तराखण्डके द्वारा हमें अपने भारतवर्ष के उत्तरी क्षेत्र से लेकर के कैलाश मानसरोवर तक की याद आती है। कैलाश मानसरोवर की याद आना स्वाभाविक भी है। कभी यह भारतवर्ष का हिस्सा था। महाराजा रणजीत सिंह जी के शरीर शान्त होने के पश्चात अंग्रेजों ने सिखों के ताकत को कमजोर करने के लिए जब पड़ोसियों को भड़काना शुरु किया तो उन्हें सबक सिखाने के लिए निकले जनरल जोरावार सिंह ने वर्ष 1841 में पश्चिमी तिब्बत पर हमला किया था। उन्होंने तिब्बती सेना को हरा दिया व कैलाश पर्वत व मानसरोवर झील को भी जम्मू कश्मीर की सीमा में मिला दिया था। उनके बहादुरी से प्रभावित हो कर उनके विरोधियोंने – तिब्बतियोंने ही। उनकी समाधि ‘तो-यो’ नामक स्थान में बनाई जो कैलाश के मार्ग में है। वह समाधि तकलाकोट से 5 कि.मी. दूर है।
अब उत्तराखण्ड नामक राज्य बन जाने से उपर्युक्त सीमा छोटी हो गयी है; ठीक ही है, आज की व्यस्तता में हम जैसे व्यक्तियों के लिये टुकड़ों में भारत भूमि का अध्ययन करना एवं उसके लिये भ्रमण करना आसान हो गया है। आइये देवभूमि उत्तराखण्ड के विषय में कुछ परिचय प्राप्त कर लें।
उत्तराखण्ड में हिमालय की लगभग सभी श्रेणियों ने स्थान पाया है। यहाँ के लगभग 86% भाग पर पहाड़ पाये जाते हैं एवं इसके लगभग 65% भाग वनाच्छादित है। उत्तराखण्ड को 8 भोगौलिक क्षेत्रों में बाँटा जा सकता है। वे हैं –
- ट्रांस हिमालयी क्षेत्र – ढाई से साढ़े तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह क्षेत्र दर्रों के लिये विख्यात है। बदरीनाथजी के पास का मांडा गाँव इसी में है।
- वृहत्त हिमालयी क्षेत्र – वृहद हिमालयी क्षेत्रों में नंदा देवी व दूनागिरी जैसे पर्वत हैं। यहीं से अलकनंदा, भागीरथी, धौली गंगा जैसी नदियों का उद्गम हुआ है।
- लघु हिमालयी क्षेत्र – यह खनिजों से भरपूर क्षेत्र अपने शीतोष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों के लिये प्रशिद्ध हैं जिनमें देवदार, व चीड़ जैसे वृक्ष धरती को अनूठी शोभा देते हैं। यहाँ से सरयू आदि कई नदियों का प्रारम्भ होता है। यहाँ कई ताल भी पाये जाते हैं। यहाँ छोटे छोटे घास के मैदान जिन्हें हम बुगयाल कहते हैं, पाये जाते हैं।
- दून क्षेत्र – जैसे देहरादून। यहाँ गहन कृषि होती है व जनता की आबादी भी खूब होती है।
- शिवालिक पहाड़ी
- भाभर क्षेत्र – पथरीली जमीन
- तराई क्षेत्र – हरिद्वार जैसे स्थान जहाँ तरह तरह की खेती होती है। यहाँ पाताल तोड़ कुएँ भी पाये जाते हैं।
- गंगा के मैदानी भाग – सर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र
आइये यहाँ के कुछ प्रसिद्ध तीर्थस्थलों के विषय में जानकारी लेते हैं। ऐसे तो यहाँ अगणित देवस्थल हैं परंतु भीड़ सामान्यतया निम्नलिखित स्थलों पर जाती है –
- उत्तराखण्ड के चारों धाम – बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री, यमुनोत्री,
- उन चारों धामों के शीतकालीन प्रवास स्थान,
- पञ्च केदार,
- सप्त बद्रि,
- पञ्च प्रयाग,
- शक्तिपीठ यात्रा,
इनके अलावा हर तरह के पर्यटकों को लुभाने वाले हर तरह के क्षेत्र यहाँ उपलब्ध हैं वे चाहे rock climbing हो, या rafting, skating हो या adventurous trails हों। सब कुछ है यहाँ।