यह वैदिक ज्ञान एवं विकसित प्रौद्यौकी की एक झांकी है;
महर्षि भरद्वाज ने एक पुस्तक लिखी थी ‘यन्त्रसर्वस्व’। उसमें 40 प्रकार के यंत्रों का वर्णन है।
उनमें से एक प्रकरण वैमानिकी पर है। इस वैमानिकी प्रकरण में आठ अध्याय, 100 अधिकरण एवं 500 सूत्र थे।
25 प्रकार के विमानों में कुछ मांत्रिक होते थे जो केवल मंत्र से चलते थे। कुछ यांत्रिक थे जैसे आज के विमान। कुछ तांत्रिक थे जो औषध युक्त होते थे अर्थात आई सी यू जैसी सुविधायें रही होंगी। कुछ रुक्म थे कुछ आज के जेट विमानों की तरह तेज थे। कुछ त्रिपुर विमान थे अर्थात वे जल, नभ एवं थल तीनों जगह चल सकते थे। कुछ विमानों में अदृश्य होने की भी क्षमता थी। वे लेसर किरणों तक को छोड़ने में सक्षम थे एवं आज के मिसाइल जैसी चीजों को तो वे बहुतायत में छोड़ सकते थे। उस काल में विमान बहुतायत में थे।
पुष्पक विमान जैसे श्रेष्ठ विमान कम से कम संख्या में दो तो थे ही।
इस भाग में तो केवल प्रस्तावना मात्र है अगला भाग अवश्य देखिएगा। परंतु इसे देख कर प्रभु श्री रामचन्द्र जी के कुछ अनछूए पहलू भी आपके ज्ञान में आयेंगे जैसे उन्होंने माता सीता तक को दान में दे दिया था।
पुष्पक विमान का कोई भी चित्र उपलब्ध न होने से वह तो नहीं दिया जा सका है परंतु धर्म प्राण प्रेमियों के लिए श्री बदरीनाथजी , श्री केदारनाथ जी , गानोत्री धाम एवं गोमुख के एवं यमुनोत्री के दर्शन की व्यवस्था की गयी है।
काशी जी में आज भी प्राचीनकालीन एक गगनचर विमान है। उसका भी उल्लेख यहाँ पर हुआ है।
जय जय श्री सीताराम
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