देवोत्थानी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी अति महत्त्वपूर्ण तिथि होती है
आजके दिन घी या तिल के तेल के खूब दीये जलाइये।
मानसिक रूप से अंजलि भर के कमल के फूल भगवान श्री हरि विष्णु को चढ़ाइए। याद कीजिये श्री बद्रीनाथ जी को और पुष्प चढा दीजिये, याद कीजिये श्री द्वारिकाधीश जी को और पुष्पांजलि समर्पित कर दीजिये, पूरी के भगवान जग्गानाथजी को याद कीजिये एवं श्रीकृष्ण, सुभद्रा एवं बलरामजी को भाव के पुष्प चढा दीजिये। ऐसेही जिन विष्णुओं का ध्यान आवे वे चाहे पद्मनाभ स्वामी हों या भगवान श्रीरंगनाथजी, चाहे घर के पास के ही विष्णुजी हों, घर में विधिवत पूजा करके उनके ध्यान में डूब जाइये। ऐसा लगे जैसे विष्णुजी की लाइन लग गयी हो आपके पुष्पों को पाने के लिये – अरे ऐसा हो गया तो कितने भाग्यशाली हुए आप।
आप घर के ठाकुर जी को तो स्वतः ही पूजा करें परन्तु जिनको आप खुद न छू सकें उनकी मानसिक पूजन करें।
आज व्रत रहिएगा, न रह सकें तो चावल तो मत ही छूइयेगा। आजके दिन चावल का दान तक नहीं किया या लिया जाता है।
आज हो सके तो गन्ना के रस से ठाकुरजी को नहला कर खुद भी पीजिये। और मलयागिरि चन्दन में एक फूल केशर रगड़ कर विष्णुजीको पूरा उससे ढक दीजिये (या खूब लगा दीजिये) – आज वे तुलसी जी से विवाह करने जा रहे हैं न, उनके पूरे शरीर को सुवासित कर दीजिये, हल्दी के रस्म की तरह – और उस बचे हुये चन्दन को अपने माथे पर लगा लीजिये या मुँह पर मल लीजिये।
आइये इस कथा को सुनते हैं। समय न होने से इसे ट्रेन में बनाया गया है। आशा है कि विक्षेपों को आप इस बालक की गलती समझ कर क्षमा कर देंगे।
जिसके पास समय न हो वे कम से कम मेरी 10 मिनट वाली हिंदी की कथा ही सुन लें जो इसी mandakini.org पर उपलब्ध है। ऐसे संस्कृत की कथा का तो महत्त्व विशेष है ही।
।।सीताराम।।