अँग्रेज़ी नववर्ष पर राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह ” दिनकर ” जी की बहु चर्चित कविता :-
ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं,
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना ये व्यवहार नहीं।
धरा ठिठुरती है शीत से,
आकाश में कोहरा गहरा है,
बाग़ बाज़ारों की सरहद पर
सर्द हवा का पहरा है।
सूना है प्रकृति का आँगन
कुछ रंग नहीं, उमंग नहीं,
हर कोई है घर में दुबका हुआ
नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं
चंद मास अभी इंतज़ार करो,
निज मन में तनिक विचार करो,
नये साल नया कुछ हो तो सही,
क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही।
ये धुँध कुहासा छँटने दो,
रातों का राज्य सिमटने दो,
प्रकृति का रूप निखरने दो,
फागुन का रंग बिखरने दो।
प्रकृति दुल्हन का रूप धर,
जब स्नेह – सुधा बरसायेगी
शस्य -श्यामला धरती माता,
घर – घर ख़ुशहाली लायेगी
तब चैत्र-शुक्ल की प्रथम तिथि,
नव वर्ष …मनाया जायेगा।
आर्यावर्त की पुण्य भूमि पर,
जय-गान सुनाया जायेगा।।
उनकी कविता को शत शत नमन है. वे प्रबुद्ध व्यक्ति थे
परन्तु हम क्यों भूलते हैं की हमारा राज्य सम्पूर्ण भूमंडल पर था. हमारे राजा राम के लिए तुलसीकृत रामायण (उत्तर /२१/1/) में लिखा है ,
भूमि सप्त सागर मेखला। एक भूप रघुपति कोसला॥
भुअन अनेक रोम प्रति जासू। यह प्रभुता कछु बहुत न तासू॥
अर्थात , श्री रघुनाथजी सात समुद्रों की मेखला (करधनी) वाली पृथ्वी के एक मात्र राजा हैं। जिनके एक-एक रोम में अनेकों ब्रह्मांड हैं, उनके लिए सात द्वीपों की यह प्रभुता कुछ अधिक नहीं है॥
तो आइये वसुधैव कुटुम्बकम की भावना से ओतप्रोत हो करके इस पर्व का भी स्वागत करें
इस पर्व को मनाये जाने के औचित्य पर मैं अपने उदीयमान मित्र संस्कृत के प्रकांड विद्वान् स्वनाम धन्य डा श्रीनिवास पाण्डेयजीकी रचना की पांडुलिपि आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ. आशा है यह स्वीकार्य होगी
HAPPY NEW YEAR
सीताराम
बहुत ही सही बात कही है आपने , परंतु आज किसी भी मायने में वसुधैवकुटुम्बकम् को स्वीकारना तनिक कठिन है ।
जब सामने वाला आपको मित्र न माने तो उससे लंबे समय तक मित्रवत व्यव्हार नहीं किया जा सकता हैं। ।
शायद यह कलिकाल का प्रकोप है कि नेगेटिविटी इतनी तीव्र गति से बढ़ती है कि अपने उत्कृष्ट विचारों को वह दबा दे रही है; अन्यथा सन्तों के वचन पर यदि विश्वास किया जाए तो सद्विचारों के द्वारा सामने वाले के विचार भी सुधारे जा सकते हैं।
गौतम बुद्ध व डाकू अंगुलिमाल की कहानी तो हम सबने बचपन में पढ़ी ही है।
Let us do our duty, let them do their. Lets think positive.
जो जिस चीज के लिए बना वह वही देगा। हम तो अमृत पुत्र हैं।
।।सीताराम।।