भक्तों यू ट्यूब ने मेरे चैनल के इस पोस्ट को डिलीट कर दिया है एवं यहाँ पर मैंने पुनः अपलोड किया है परन्तु लोगों का कहना है कि यह भी नहीं खुल रहा है अतः मैं इस वीडियो में कही बातों को टाइप कर दे रहा हूँ।
मलूकपीठाधीश्वर स्वामी श्री राजेन्द्रदास देवाचार्य महाराज जी ने 19 अप्रैल 2021 के कुम्भ मेले में हुंकार पूर्वक यह घोषणा किया कि उन्हें विश्वास है कि शुद्ध भारतीय देशी गौ के गोबर एवं गो मूत्र के माध्यम से कोरोना या कोविद को समूल नष्ट किया जा सकता है। ऐसा उनका अपना विश्वास तो है ही। वह विश्वास पुष्ट हुआ है उनको बन्द कमरे में एक सिद्ध के प्रकट हो करके बताने से। उनकी बातों पर विश्वास करके आइये अपनी गाय के लाभ को जानें एवं उसे प्राप्त कर लें।
मूल संदेश
- शुद्ध नस्ल एवं स्वस्थ भारतीय देशी गाय के गोबर को एक साफ सूती कपड़े में ले कर निचोड़ लें।
- जितना रस मिला उतने ही गो मूत्र को भी ले लें।
- दोनों को मिट्टी के घड़े में डालकर वाष्पीकृत कर लें।
- [जो मैं समझ सक रहा हूँ यदि अपने पास ज्यादा मात्रा में उपर्युक्त मिश्रण हो तब तो उसको पूर्ण सूखने दें एवं उस पाउडर का प्रयोग करें। यदि कोई गोशाला वाले यह पाक बना रहे हों तो बात अलग है, परन्तु इतना गोबर का रस आज कि परिस्थिति में प्राप्त होना घर में सुलभ नहीं है अतः जैसे काढ़ा बनाया जाये वैसे मधुर आंच पर उसे कम होने तक पका लें।]
- उसके प्रयोग करने से करोना ही नहीं तमाम असाध्य बीमारियाँ भी शीघ्र दूर हो जाएंगी।
- उन्होंने यह भी बताया कि उबाला नहीं भी जाये तो भी पंचगव्य के रूप में भी लेने से लाभ प्राप्त होगा।
- [पंचगव्य बनाने कि विधि तो उन्होंने वर्णित नहीं किया परन्तु मेरी पुस्तिका स्मृति सुधा में जो लिखा है उसे संक्षेप में यहाँ वर्णित कर के रहा हूँ। पंचगव्य बनाने के लिए गाय का गोबर एक भाग, गो मूत्र दो भाग, गाय का घी गोबर से चार गुना, गाय का दूध और दही को गोबर से आठ-आठ गुना मिलाना चाहिये (अत्रिस्मृति 296,297)। यम स्मृति के 71, 72 के अनुसार गो मूत्र और दही सफ़ेद गाय का, गोबर काली गाय का, दूध लाल गाय का, और घी कपिला गाय का होना चाहिये। ]
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इस औषधि के विषय में उनको ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ?
करोना के दूसरे दौर में पूज्य महाराज जी का स्वास्थ्य बिगड़ गया था। उनको बीमारी के सभी लक्षण प्रकट हो गए थे। हालांकि जांच में कुछ निकला नहीं था परंतु स्थिति शोचनीय होती जा रही थी। तब एक रात को वे लगभग डेढ़ बजे विश्राम पर गए एवं भोर में लगभग चार-साढ़े चार बजे जागे परंतु बिस्तर पर से उठे नहीं थे क्योंकि शरीर फर-हर नहीं था। उनको बन्द कमरे में जिसमें उनके अतिरिक्त कोई और नहीं था, एक कृशकाय महात्मा ने प्रकट हो कर दर्शन दिया और ऊपर वर्णित औषधि का ज्ञान दिया।
मलूकपीठाधीश्वर श्री राजेन्द्र दासजी महाराज ने अपने स्वप्न की चर्चा में यह भी कहा कि दर्शन दे रहे महात्माजी ने सिद्ध किए जा रहे (वाष्पीकृत किए जा रहे) गोबर के रस व गोमूत्र के मिश्रण में कुछ औषधियाँ भी डालने का निर्देश दिया। परन्तु उन्होंने उनका नाम नहीं बताया।
उन्होंने नाम क्यों नहीं बताया होगा?
शायद वे इसलिए न बताए हों कि हम लोग उन औषधियों को सही रूप से जुटा न पाएँ एवं यदि खोज भी लें तो उन पेड़ों से सही तरीके से प्रार्थना किए बिना तोड़ लें। इसलिए उन्होंने बिना उन औषधियों के मिलाये हुये भी उपयोग करने से होने वाले लाभ का जिम्मा अपने तप बल से ले लिया हो। ऐसे उन्होंने कथा में ही हमे यह अवगत करा दिया कि मलूकपीठ कि देखरेख में चलने वाले वृन्दावन स्थित जडखोर गोशाला में बिकने वाले रसायन ‘अमृत अर्क‘ को बनाने में गाय के गोबर व गोमूत्र के अलावा 24 प्रकार कि जड़ी – बूटियों का अर्क भी डाला जाता है।
मलूकपीठाधीश्वर का राष्ट्र व गो प्रेम
ऊपर की बात बताते हुए महाराजजी भाव विह्वल हो गए और कहने लगे कि यदि इस प्रयोग को करते हुये भारत कि गायें पूरे दुनिया से करोना को समूल विनष्ट करने में अपना महत्त्व दिखा पायें तो भारत की कीर्ति कितना बढ़ जाएगी। वे बोले कि हम लोग समय को चूक रहे हैं।
[मेरा कहना है कि हम लोगों को अपने दवाई को छोड़े बिना पंच गव्य को लेना चाहिये। सामान्य रूप से भी वह धार्मिक रूप से बहुत ही प्रशस्त माना गया है। कहते हैं कि उसके नित्य सेवन से हड्डी के अंदर का भी पाप निकल जाता है।
वे कहने लगे कि यदि भारतीय देशी गाय कि महत्ता स्थापित हो गयी तो गो वंश के समृद्धि होते देर न लगेगी। जो गायें दूध नहीं भी दे रही होंगी उनका भी पालन व पोषण लोग उनके गोबर व मूत्र के लिए दिल से करेंगे एवं जब गाय सेवा व संवर्धन होगा तो राष्ट्र कि भी ऐसे उन्नति होगी कि हम किसी से हाथ नहीं फैलाएँगे अपितु हम दाटा बन जाएंग।
देशी गाय कि महत्ता को इन्हीं श्री मलूक पीठाधीश्वर कि कृपा से जानकार मैंने अपने वैज्ञानिक जानकारी (जिसे मैंने BHU में सम्पन्न पंद्रह दिवसीय योग एवं आयुर्वेद के माध्यम से स्वस्थ जीवन का प्रशिक्षण करके जाना) से संपृक्त करके 11 पृष्ठों में लिखा है। वे अति काम के हैं एवं मेरी पुस्तक ‘मोक्षदायिनी काशी’ के दूसरे संस्करण के दूसरे पाठ के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उस पुस्तकके आमुख का भी अवलोकन इसी साइट पर किया जा सकता है। इसे देखने के लिए यहाँ पर क्लिक कर सकते हैं ॥ सीताराम॥