हरिशयनी एकाकाशी से प्रबोधिनी एकादशी तक के चार महीनों के समय को चातुर्मास कहते हैं। इस दौरान बरसात होती है अतः हमें सुरक्षित करने के लिए संतों ने इस काल में बाहर निकलने से हमें मना कर दिया। खाली इंसान खुराफाती न हो जाये अतः विभिन्न धार्मिक आयोजनों में हमें लग जाने को कहा गया है। संतों के विविध वरदानों के कारण हम उपकृत हुये हैं और विभिन्न लाभों को पाने के अधिकारी। इस महात्म्य को सुनने से आपको पता चलेगा कि किस लाभ के लिए हमें कौन सा व्रत करना चाहिए। भविष्योत्तर पुराण के लगभग 204 श्लोकों में विभिन्न उपाय दिये गए हैं; आप जैसे जैसे हिन्दी में उन फलों को सुनते चलेंगे स्क्रीन पर उनसे संबन्धित श्लोकों को भी देखते रह सकेंगे। इस व्रत को हम द्वादशी एवं पूर्णिमा से भी प्रारम्भ कर सकते हैं। इस कथा को सुनते समय हम इन चीजों से भी परिचित हो सकेंगे – चतुरंग प्रदक्षिणा, श्रोत्रिय कौन होते हैं, ब्राह्मणों के चरण क्यों धोना और पीना चाहिए, अष्टांग प्रणाम, 6 तरह के रसों के व्यंजन के उदाहरण, अम्ल रस पर विशेष, प्रजापत्य व्रत, नक्त व्रत, एक भुक्त व्रत, पयोव्रत, चान्द्रायण व्रत, स्थालीपाक, खटवांग। विभिन्न उपायों में कई एकदम सरल हैं और कई अति कठिन। हमें अपने काम के उस उपाय को खोज लेना चाहिए जो हम कर सकें एवं उसी पर लग जाना चाहिए। सभी उपायों को करने का यत्न नहीं करना चाहिए। ॥ सीताराम॥