कीलक का पाठ दुर्गा सप्तसती के पहले किया जाता है. मेरी समझ से इसके कोरे पाठ की अपेक्षा इसमें दिए गये सीख को समझना चाहिए. श्री दुर्गा सप्तसती जैसे महान फलदायी ग्रन्थ को कीलित कर दिया गया है. अर्थात उसे लॉक कर दिया गया है. देवी के पाठ का सामान्य फल तो मिलेगा ही चाहे हम उस कील को निकालें या नहीं.
परन्तु विशिष्ट फल , यथा –
1 देवी को सिद्ध कर लेना
२ अपने कार्य के लिए किसी के ऊपर निर्भरता न रह जाये , उस स्थिति को प्राप्त कर लेना,
३ दुर्गा सप्तसती के पाठ से होने वाले पुण्य को अक्षय बना लेना , जिससे कि कभी असमर्थता वश पाठ न हो पावे तो भी दैवीय कृपा प्रदत्त तेज में कमी न आने पावे,
४ निर्भयता की प्राप्ति हेतु,
५ अप मृत्यु से सुरक्षित रहने के लिए अर्थात अकाल मृत्यु न हो अर्थात अग्नि, जल, बिजली, सर्प इत्यादि से मृत्यु न हो
इन सभी लाभों के प्राप्ति के लिए हमें वह कील निकालना चाहिए. उसे निष्कीलन कहते हैं. मेरी समझ से कीलक पढने से निष्कीलन नहीं होता है अपितु समर्पण से निष्कीलन होता है. समर्पण हेतु किसी भी कृष्ण पक्ष की अष्टमी या चतुर्दशी तिथि को देवी के सामने एकाग्र चित्त से बैठ कर यह भावना करे कि माँ मैं एवं मेरा धन दौलत अब मेरा नहीं रहा. तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा. आप मेरे समेत मेरे वैभव को स्वीकार कर लीजिये. यदि किसी भाग्यवान को आकाशवाणी इत्यादि से कोई आज्ञा मिलती है तब तो वह उसका अनुपालन करे अन्यथा अपने एवं अपने समर्पित वैभव को उनका प्रसाद मान कर उसे ग्रहण करे एवं अपने दैनिक जीवन को निभावे. ऐसे समर्प्ती व्यक्ति को उपर्युक्त लाभ मिलेगा यह मेरी समझ है. यदि अहंकार वश हम दूसरों को कुछ नहीं समझने की भूल कर रहे हैं, तो शायद लाख कीलक पढ़ लें एवं नित्य पूर्ण पाठ भी किया करें फिर भी शायद हमें वह लाभ नहीं मिलेगा जो भगवान् शंकर ने कहा है.
कीलक में दिए गये सन्देश को मैंने अपने शब्दों एवं विचारों के अनुरूप व्यक्त किया है. जरूरी नहीं है कि ये पूर्णतया सत्य हों. कृपया अपने गुरु से भी इस ज्ञान पर चर्चा कर लीजिएगा. यदि कोई नयी बात सामने आती हो , या आप स्वयं ही प्रकाश पुन्ज होने से हमारे पथ को आलोकित करने में समर्थ हों तो कृपया कमेंट के माध्यम से मुझे एवं समस्त जन समुदाय को भी प्रकाशित कीजिएगा.
जय जय श्री सीता राम
जय दुर्गा मइया
Achha hai sir