मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के ग्यारहवें दिन श्रीबद्रीविशाल के क्षेत्र में लगभग 150 किलोमीटर लम्बी गुफा में, एकादशी ने भगवान विष्णु के शरीर से जन्म लिया था। इस तिथि ने उनको उतपन्न किया था इसीलिये यह तिथि उतपन्ना एकादशी कहलाई। इनके महात्म्य को भी सुन लेने मात्र सेबहुत लाभ मिलता है। इस कथा को सुनने से हमें यह ज्ञान होता है कि हम सभी को वैष्णवों वाली एकादशी का व्रत रहना चाहिए। आपको ज्ञात ही है कि यदि एकादशी दो दिन पड़ती है तो पहले दिन आम जनता रहती है एवं दूसरे दिन वैष्णव लोग। इस कथा को सुनने के बाद यह भी मालूम पड़ेगा कि एक बार भोजन करके भी व्रत रहा जा सकता है। ऐसा करने से शायद फल में कोई कमी न रहे। इसका यह अर्थ नहीं है कि जो लोग तप करते आये हैं वे निराहार व्रत को त्याग कर आहार करना प्रारंभ करें। हमारे देवी-देवताओं की दयालुता है जो वे हमें कष्ट से बचाने के लिए नियमों में छूट देते रहते हैं। परन्तु तपस्या का महत्त्व तो है ही। तप से तेज बढ़ता है। आइये उतपन्ना एकादशी के महात्म्य को सुन लेते हैं। मूल कथा जो संस्कृत में है थोड़ी लम्बी है। उसका प्रकाशन भी प्रभु ने चाहा तो एकादशी तक हो जाएगा। ।।सीताराम।।