Miscellaneous Topics

In this section I will keep on answering those questions which are asked by someone but are not suitable to be mixed with the main content.

यह एक उत्तम कोटि का व्रत है जिसे करना ही चाहिए। परन्तु यदि आप केवल इसलिए व्रत को नहीं कर रहे हैं कि कहीं ऐसा न हो कि एक बार करने के बाद आपको करना जरूरी हो जाएगा; तो चिंता मत कीजिये। आपका न मन करे या परिस्थितियाँ साथ न दे रही होंगी तो आप व्रत को छोड़ दीजिएगा। आज कर सकें तो करें। ॥ सीताराम॥  

जी हाँ। जैसे आप साँस लेते हैं वैसे ही हरी नाम का जप एवं उनका व्रत आप जहां भी जाएँ करें। ॥ सीताराम ॥ 

बिलकुल किया जा सकता है। व्रत के पारण करने का समय अर्थात व्रत को तोड़ने का समय एकादशी के व्रत के अनुसार होगा।  ॥ सीताराम॥ 

कोई हर्ज तो नहीं समझ में आता है। क्या दवाई शुरू करने के लिए महीने का विचार करेंगे? वैसे ही गुरुवार का व्रत तो किसी संकट से पीछा छुड़ाने के लिए ही तो किया जाता है। ॥सीताराम॥  

व्रत का उद्यापन क्यों करवाने की इच्छा है। यह सब तो हमें स्वस्थ रखता है। फिर भी यदि करवाना ही चाहते हों तो जो आपके यहाँ पूजा पाठ करवाने आते हों या जिन श्रेष्ठ से आप लोग राय लेते हों उन्हीं के द्वारा उसका संकल्प व पूजा इत्यादि करवा लें। ॥ सीताराम॥ 

यदि व्रत निर्जल व्रत है तब नहीं। परन्तु यदि फलाहार हो रहा है तो उससे अच्छा कुछ है ही नहीं। आयुर्वेद के द्वारा भी यह सम्मत है और प्रभु को भी प्रिय है। ॥ सीताराम॥ 

लोक मत में यही होता है। परन्तु किसी धर्म ग्रंथ में मुझे अभी तक ऐसा कुछ पढ़ने को नहीं मिला है। ऐसे लोक मत को यदि आप नहीं मानते हैं तो हो सकता है आप पर कोई इल्जाम लगा दे कि देखो उनको कोई फर्क ही नहीं पद रहा है। अतः जिसने आपको वह व्रत करने को बताया है उससे पूछ लें कि क्या वह व्रत करना बहुत जरूरी है। यदि वह आपके जीवन रक्षा जैसे कारणों से जरूरी हो तो कर लें अन्यथा लोक मत के अनुसार चलें। ॥ सीताराम॥ 

यह उनके अपने विचारों पर निर्भर करता है। तीज का व्रत पति के मंगल के लिए किया जाता है। यदि दिल ऐसा टूट गया कि तलाक न भी हुआ हो तो भी वह चाहें तो व्रत न रखें। यदि कोई महिला तलाक के बाद भी व्रत रखना चाहें तो कोई मनाही नहीं है। देखिये अपने हिन्दू धर्म में तलाक का कोई विधान है ही नहीं इसलिए व्रत कि मनाही भी नहीं है। सब कुछ उस स्त्री के इच्छा पर निर्भर करता है। ॥ सीताराम॥ 

नहीं। यदि दिन नहीं बीता है, तो जबसे याद आवे तबसे रह सकते हैं।  ॥ सीताराम॥ 

कथा के अंत में ‘इति’, ‘समाप्त’, ‘अध्याय’ जैसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। बताया जाता है कि इससे पाठ करने का फल खत्म हो जाता है। अतः कम से कम यदि कोई नयी पुस्तक लिखी जा रही हो तो हमें पाठ के अंत में इन शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिये।