Author name: mandakini

चातुर्यमास माहात्म्य

हरिशयनी एकाकाशी से प्रबोधिनी एकादशी तक के चार महीनों के समय को चातुर्मास कहते हैं। इस दौरान बरसात होती है अतः हमें सुरक्षित करने के लिए संतों ने इस काल में बाहर निकलने से हमें मना कर दिया। खाली इंसान खुराफाती न हो जाये अतः विभिन्न धार्मिक आयोजनों में हमें लग जाने को कहा गया

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हरि शयनी एकादशी अर्थात आषाढ़ शुक्ल की पद्मा एकादशी

आज के दिन भगवान विष्णु सोते हैं-पर कहाँ नहीं सोते हैं उसे जानें। शयन व्रत विधि एवं संक्षिप्त चातुर्यमास विधि। रामाननदाचार्य जी का पवित्र उद्घोष ‘जाति पाति पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई’। गृहस्थ को कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत करना चाहिए या नहीं – इसका निर्णय सप्रमाण। ‘कह रघुपति

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महामन्त्र रहस्य – 16 नामों वाला मन्त्र

ISKCON द्वारा प्रचारित मन्त्र महामन्त्र है। परन्तु इन तीनों में से सही महामंत्र कौन सा है? हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे। हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे॥ या हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे॥ या हरे कृष्ना हरे कृष्ना, कृष्ना

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योगिनी एकादशी – आषाढ़ कृष्ण पक्ष

योगिनी एकादशी को अनन्त श्री योगिराज श्री देवराहा बाबा जी का गोलोक गमन हुआ। उनको श्रद्धांजलि देने के लिये इसमें उनके ही चित्रों को मैंने सजाया है। जब आप इस यू ट्यूब को देख रहे होंगे तो आप इसके स्क्रीन शॉट में योगिराज श्री देवराहा बाबा के कुछ विचार भी जान सकेंगे , यथा- यज्ञ

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तुलसी Tulsi

अति विशेष बात – कृपया अंत में देखें। दैवीय गुण – तुलसी को कौन नहीं जानता होगा। विष्णुप्रिया इस कलिकाल में हमारे सामने साक्षात प्रकट रूप में स्थित हैं। अरे ये देवी हैं। क्यों भगवान के दर्शन के लिए भटक रहे हो। पर्यावरण संरक्षण ये पर्यावरण के लिए बहुत अच्छी मानी जाती हैं। आप घर

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वट सावित्रीकी पूजन व कथा संक्षेप में

इसमें आपको उनकी पूजन विधि व कथा दोनों की ही जानकारी मिलेगी। मैंने अपने पिछले विडियो में इनकी कथा विस्तार से सुनाई थी जो स्कन्द पुराण के प्रभास खण्ड के अनुसार थी। वहाँ कथा पूजन विधि नहीं लिया गया था। यह कथा मैंने महाभारत के वन पर्व से उद्धृत किया है। ॥ सीताराम॥

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बजरंग बाण पूर्ण

यह बजरंग बाण पूर्ण है। इसमें कुछ चौपाइयाँ ज्यादा हैं जो तुलसी घाट स्थित हनुमान मंदिर में से प्राप्त उनके हाथ से लिखे पुस्तक को देख करके बढ़ायी गईं हैं। कविराज गोपीनाथ पानटजी के सुपुत्र पं. विश्वनाथ दीक्षित का इसमें बहुत बड़ा योगदान है; क्योंकि वह प्रति केवल विशिष्ट लोगों को ही सुलभ हो सकता

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