सुंदरकाण्ड मूल – तुलसीकृत

ऊपर दिये गए बटन को क्लिक करके आप इस काण्ड के मूल पाठ को तो पढ़ सकते ही हैं। इसमें प्रधान प्रसंग की जानकारी भी अलग हेडिंग के रूप में लगातार सूचित किया जाने का प्रयास किया जाएगा। सोचने वाले सोच सकते हैं कि यह तो अनुक्रमणिका (इंडेक्स) मात्र है परंतु साथ साथ में कुछ विशिष्ट प्रयोगों कि जानकारी भी मिलेगी जो सामान्य पुस्तकों कि अनुक्रमणिका में नहीं मिलेगी।

साथ ही साथ एक बात और है। धीमे धीमे जैसे जैसे मैं विभिन्न प्रामाणिक संतों के अनुभवों को संभव होगा समेटते जाऊंगा। उदाहरण्ड के लिए बता दूँ। तुलसी कृत मानस के सुंदरकाण्ड में जो लिखा है वह नीचे दिया गया है, परंतु श्री रामभद्राचार्यजी द्वारा निर्णीत इस चौपाई का सही रूप उसके नीचे लिखा है।

ये रामभद्राचार्य जी वे ही हैं जो प्रज्ञा चक्षु हैं परंतु रामजन्मभूमि के वाद में न्यायालय में वेदों तक से उद्धृत करते हुये धाराप्रवाह प्रमाण दे करके सबको अवाक कर दिये। उसी के बाद ही तो निर्णय राम लाला विराजमान के पक्ष में आया। मैं सुंदरकाण्ड में उनके द्वारा प्रतिपादित वाक्य को भी लिखूंगा।

दो0=उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिकेत।
जय कृपाल कहि चले अंगद हनू समेत।।44।।

पाठ भेद – स्वामी श्री रामभद्राचार्य जी महाराज, तुलसी पीठ, चित्रकूट द्वारा निर्णीत
उभय भाँति तेहि आनहु हँसि कह कृपानिधान ।
जय कृपाल कहि चले अंगदादि हनुमान ।।44।।

परंतु इस प्रकार कि अन्य जानकारियान सत्संग से धीरे धीरे मिलती रहेंगी। इसलिए साल दो साल में एक बार देख लिया कीजिएगा, हो सकता है कुछ नया इसमें जुड़ा मिले आपको।

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