यह गान 15 अगस्त सन् 1947 से 23 जनवरी सन् 1950 तक आज के राष्ट्र गीत के साथ-साथ भारतवर्ष में राष्ट्र गान के रूप में जन जन की वाणी को सुशोभित करता था। 24 जनवरी सन् 1950 से जन गण मन ने इस कंठाहार का स्थान ले लिया।
ऊपर दिया गया गान इस देश के दैदीप्यमान नक्षत्र सुभाष बाबू, जी हाँ, ‘आज़ाद हिन्द फ़ौज़’ के संस्थापक, बाबू सुभाष चन्द्र बोस, की प्रेरणा से प्रणीत किया गया था। उनकी इच्छा पर, कैप्टन आबिद अली ने सर रबिन्द्र नाथ टैगोर की रचना जनो गणो मन का ट्रांसलेशन करके इसे बनाया। उसको धुन दिया कैप्टन राम सिंह ठाकुरि ने।
‘शुभ सुख चैन की बरसा ‘ आज़ादी के पूर्व आज़ाद हिंद फौज का राष्ट्रगान था एवं आज़ादी के बाद भारत का।
15 अगस्त 1947 की पावन वेला पर लाल किला से गाने के लिए श्री ठाकुरि जी को विशेष आमंत्रण दिया गया था।
24 जनवरी 1950 में जब तत्तकालीन राष्ट्रपति, डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने जब ‘जन गण मन अधिनायक….’,को राष्ट्रगान के रूप में अपनाए जाने की घोषणा कर दी तब से इसको छोड़ दिया गया।
उसके पूर्व किसी आधिकारिक घोषणा के अभाव में सुभाष बाबू के इस गान को एवं ‘वन्दे मातरम ‘को अलग अलग लोगों द्वारा समकक्ष मानते हुए दोनों का ही प्रयोग किया गया। हालांकि ‘वन्दे मातरम’ में देवी उपासना जैसे वाक्य होने कर कारण सम्प्रदाय विशेष को उसे गाने में असुविधा को देखते हुए सुभाष बाबू के ही राष्ट्र गान को बहुधा गाया जाता था।
Shubh Sukh Chain was the National Anthem of The Provisional Government of Free India. The same was borrowed from Azad Hind Force of Subhas Chandra Bose ji who had used it as his National Anthem.
Subsequent to adoption of today’s National Anthem by the then President of India, Late Dr. Radhakrishnan, on 24th of Jan., 1950, the same became a part of The Glorious History of India.
Rules regarding National Anthem.
Among various rules the most important is to stand in respect of it when heard. If one sings along with, then good; but not singing is not an offence has been decided by Hon. Supreme Court of India. राष्ट्रगान होने पर सावधान की मुद्रा में खड़े होने का प्रावधान है। उसको गाने से मना करने दंडनीय नहीं है ऐसा सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है।
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