शंकराचार्य विरचित देव्यपराध क्षमापन स्तोत्र

अद्वैतवाद के प्रवर्त्तक श्रीशंकराचार्य का देवी को अलग मानते हुए क्षमा याचना करना। यदि दूसरा कोई था ही नहीं तो देवी के आगे क्यों झुकना? उनसे क्षमा मांगने का अर्थ है कि उन्होंने माना कि उनसे कोई भूल हुयी है क्योंकि वे कोई हमारे कि तरह सामान्य व्यक्ति तो थे नहीं कि चलो मन में आया तो उनकी भी आराधना कर लें। यदि उन्होंने माता के सामने आर्त्त भाव दिखाया है तो वह उनके अंदर का ही भाव रहा होगा। He would have meant it.

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