गंगा और गोमती के तट पर बसे इनका मन्दिर युगों से प्रेमी भक्तों व संतों को आकर्षित करता रहा है। मन्दिर में ताखे में ऊपर मार्कण्डेय जी हैं जो नीचे अवस्थित महादेवजी से लिपट कर अमर हो गए हैं। काल के डर से वे (12 वर्षीय मार्कण्डेयजी) शिवलिंगसे ऐसे लिपटे कि खुदाई में सात अरघा नीचे तक दोनों लिपटे पाए गए। इनके विषय में कुछ चैनलों के माध्यम से भी दिखाया गया है कि जब सब बन्द हो जाता है तब कोई इनकी पूजा कर जाता है। उस शिवभक्त को तो कैमरा न कैद कर सके परन्तु गंगा एवं गोमती के संगम पर भोर में लगभग 2 बजे अचानक दीया जलते हुए एवं भीगे बालू में अचानक प्रकट हुये तीन – चार चरणों के चिह्न को (एक ही व्यक्ति के चलने से बने) अवश्य कैमरा ने पूरे विश्व को दिखाया। इनका दर्शन काशीजीके चौरासी कोसी यात्रा में दसवें दिन के पड़ाव में होता है जब यात्रीगण इसी मार्कण्डेश्वर धाम में रात्रि व्यतीत करते हैं। इस पूरे यात्रा का उल्लेख मेरी पुस्तक ‘मोक्षदायिनी काशी’ में उपलब्ध है।।सीताराम।।
Well known story of a boy named Markandey who was destined to die at an age of 12 years garlanded the Shiva he was praying with said to be Maha Mrityunjay Mantra, when he saw the Yamraj trying to capture his soul. Lord Shiva appeared and hit the Yamraj from his sole at his chest. He was made immortal. Various TV Channels have visited the place and proved the presence of someone who can not be captured by camera but does visit the temple to offer flowers etc. to lord Shiva. He is understood to be the immortal Markandey. This place is the tenth stop of 84 Kos Yatra of Kashi. My book in Hindi, ‘Mokshdayini Kashi’ gives the details of all that.